जब सड़क पर सूखे पत्तों के ढेर को देखता हूँ तो. . .
जब उनका कर्च-कर्च कराहना सुनता हूँ तो. . .
एहसास होता है कि यह जिस यश पर इतना गुमाँ करते हैं हम. . .
जिन उपलब्धियों को अक्सर गिनवाते हैं हम. . .
बस कुछ ही पलों की मेहमान हैं वो. . .
फिर नये पत्तों के इंतज़ार में हैं वो. . .
जल्द ही पेड़ फिर हरा-भरा होगा. . .
पुराने की जगह कोई नया लेगा. . .
वक़्त नहीं लोग हैं गुज़रते...
छाया के लिए राही नहीं वही सूखे पत्ते हैं तरसते।
Just came across your blog. Liked the poetry written by you. Very meaningful. Your other articles too are great. Do keep writing and blogging. All the best.
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