Tuesday, March 31, 2015

Beginning of the end




जब सड़क पर सूखे पत्तों के ढेर को देखता हूँ तो. . . 
जब उनका कर्च-कर्च कराहना सुनता हूँ तो. . . 
एहसास होता है कि यह जिस यश पर इतना गुमाँ करते हैं हम. . . 
जिन उपलब्धियों को अक्सर गिनवाते हैं हम. . . 
बस कुछ ही पलों की मेहमान हैं वो. . . 
फिर नये पत्तों के इंतज़ार में हैं वो. . . 
जल्द ही पेड़ फिर हरा-भरा होगा. . . 
पुराने की जगह कोई नया लेगा. . .
वक़्त नहीं लोग हैं गुज़रते...
छाया के लिए राही नहीं वही सूखे पत्ते हैं तरसते। 

1 comment:

  1. Just came across your blog. Liked the poetry written by you. Very meaningful. Your other articles too are great. Do keep writing and blogging. All the best.

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